कैसा रहेगा मिथुन राशि वालों के लिए मिथुन का गुरु?
मिथुन राशि वालों के लिए गुरु का मिथुन राशि में गोचर उनकी राशि के ऊपर से ही रहेगा। गुरु का अपनी राशि के ऊपर से गोचर शुभाशुभ फलदायक रहता है। एक ओर जहाँ यह बाधाकारक एवं प्रतिकूल फलदायक माना जाता है तथा स्वास्थ्य आदि की दृष्टि से भी अनुकूल फलप्रद नहीं माना जाता, वहीं दूसरी ओर यह धार्मिक एवं मानवीय प्रवृत्ति में वृद्धि करता है। सन्तान के क्षेत्र में एवं विवाहयोग्य व्यक्तियों के लिए उनकी मनोकामना पूर्ण करता है। गुरु के इस गोचर का प्रतिवेध स्थान प्रथम भाव ही है, अतः मिथुन राशि में जब-जब अन्य ग्रहों का गोचर होगा, तब-तब इसके अशुभफलों में कमी आएगी।
मिथुन राशि में गोचरावधि के दौरान शनि जहाँ दशम भाव में गोचररत रहेगा, तो वहीं 29 मई से राहु नवम भाव में गोचर करेगा, जाे कि शुभ नहीं है। ऐसी स्थिति में गुरु के अशुभफलों में भी वृद्धि देखने को मिल सकती है।
जन्मराशि के ऊपर से गुरु का गोचर होने पर वह अपनी दृष्टि से पंचम, सप्तम एवं नवम भाव को प्रभावित करेगा। पंचम भाव पर गुरु की दृष्टि के फलस्वरूप जातक को संतति से संबंधित कुछ समस्याएँ एवं चिन्ताएँ रह सकती हैं। इस अवधि में संतति को अपेक्षित सफलता प्राप्त करने में कठिनाई का भी अनुभव हो सकता है। वैवाहिक जीवन में भी अपेक्षानुरूप परिस्थितियाँ न रहने से तनाव एवं निराशा का भाव उत्पन्न हो सकता है। नवम भाव पर गुरु की दृष्टि के चलते धर्म एवं अध्यात्म में अभिरुचि बढ़ेगी और धार्मिक यात्राएँ करने के अवसर आएँगे।
स्वास्थ्य ः स्वास्थ्य की दृष्टि से गुरु का यह गोचर बहुत अनुकूल फलप्रद नहीं है। इसलिए स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है। पहले से चली आ रही बीमारियों में भी सावधानी रखें। इस दौरान शनि का गोचर हृदय आदि रोगों के प्रति संवेदनशील है।
परिवार एवं समाज ः गुरु के इस गोचर के फलस्वरूप जहाँ पारिवारिक अशांति जैसी समस्याएँ परेशान कर सकती हैं, वहीं दूसरी ओर विवाहयोग्य व्यक्तियों के विवाह होने के भी अवसर आएँगे। जिन दम्पतियों को सन्तान की अभिलाषा है, उन्हें भी शुभ समाचारों की प्राप्ति हो सकती है। एक ओर जहाँ संतान की अभिलाषा पूर्ण होने के योग बनते हैं। हालांकि इस अवधि में संतति के सम्बन्ध में कुछ चिन्ता भी रह सकती है। माता-पिता के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। सामाजिक मान-प्रतिष्ठा के प्रति सावधान रहने की जरूरत है।
वित्तीय स्थिति ः वित्तीय मामलों में गुरु का जन्मराशि के ऊपर से गोचर मध्यम फलप्रद है। विशेष प्रतिकूलता की आशंका नहीं है, परन्तु खर्चों में आकस्मिक वृद्धि के चलते आर्थिक स्थिति प्रभावित हो सकती है। पैतृक सम्पत्ति सम्बन्धी विवाद परेशान कर सकते हैं। इन दिनों जोखिमपूर्ण धन निवेश न करें। साथ ही, वित्तीय मामलों में किसी पर अधिक विश्वास न करें, क्योंकि इस गोचरावधि में धोखा प्राप्ति की भी आशंका है। आय में उतार-चढ़ाव की सम्भावना दिखाई दे रही है। शेयर बाजार आदि में निवेश की प्रवृत्ति रह सकती है, परन्तु इस सम्बन्ध में सावधानी रखने की आवश्यकता है।
नौकरी एवं व्यवसाय ः नौकरी एवं व्यवसाय की दृष्टि से गुरु का यह गोचर सामान्यतः मध्यम फलप्रद है। एक ओर जहाँ नवीन चुनौतियों, उत्तरदायित्वों आदि के अवसर आएँगे, वहीं दूसरी ओर कार्याधिक्य एवं तनाव का भी सामना करना पड़ेगा। उच्चाधिकारियों से अच्छे सम्बन्ध बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही, सहकर्मियों एवं अधीनस्थों के मामले में गलतफहमी उत्पन्न हो सकती है। इसलिए सुनी-सुनाई बातों के आधार पर प्रतिक्रिया करने से बचना चाहिए।
मिथुन राशि वाले व्यवसायियों के लिए समय बहुत अनुकूल नहीं है। एक ओर जहाँ आन्तरिक समस्याएँ परेशान करेंगी, वहीं दूसरी ओर व्यवसाय में अपेक्षित प्रगति न होने से परेशानी का अनुभव होगा। लेनदारियाँ प्राप्त नहीं होने से देनदारियाँ बढ़ेंगी। ॠण आदि लेने की भी स्थितियाँ बन सकती हैं। इन दिनों जोखिमपूर्ण धननिवेश न करें। नियमों एवं कानूनों का पालन करें। रिटर्न आदि सरकारी जिम्मेदारियों के सम्बन्ध में सतर्क रहें।
अध्ययन एवं परीक्षा ः अध्ययन एवं परीक्षा की दृष्टि से गुरु का यह गोचर शुभफलदायक नहीं है। अध्ययन में एकाग्रता की समस्या का सामना करना पड़ेगा, वहीं बाधाएँ भी परेशान कर सकती हैं। अन्य कार्यों में व्यस्तता के चलते अध्ययन प्रभावित होगा। प्रतियोगिता परीक्षार्थियों के लिए भी समय पूर्वोक्तानुसार रहना चाहिए। साथ ही, कम्प्यूटर एवं विज्ञान से सम्बन्धित विषयों में भी अभिरुचि बढ़ेगी और इन क्षेत्रों में भी अपेक्षाकृत अधिक सफलता मिलेगी। इसके अतिरिक्त धर्म, ज्योतिष आदि से सम्बन्धित पुस्तकों के पढ़ने में अभिरुचि बढ़ेगी।
उपाय – गुरु के अशुभ फलों में कमी के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिएः
1. सातमुखी, आठमुखी एवं दसमुखी रुद्राक्ष गले में धारण करने चाहिए।
2. भगवान् विष्णु की पूजा-उपासना तथा विष्णुसहस्रनामस्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
3. ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः। मन्त्र का नित्य अधिकाधिक बार जप करना चाहिए।
4. आध्यात्मिक गुरु बनाएँ और उनका अधिकाधिक आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
5. बृहस्पति के सत्ताईसा यन्त्र की घर में स्थापना कर नित्य धूप-दीप आदि से पूजन करना चाहिए।
6. वर्ष में एक बार तीर्थयात्रा करें। •