कैसा रहेगा सिंह राशि वालों के लिए मिथुन का गुरु?
सिंह राशि वालों के लिए गुरु का मिथुन राशि में गोचर उनकी राशि से एकादश भाव में रहेगा। एकादश भाव में गुरु का गोचर सामान्यतः शुभफलदायक माना जाता है। इस गोचरावधि में रुके हुए कार्यों में प्रगति होगी तथा सफलता प्राप्ति के अवसरों में वृद्धि होगी। परिजनों एवं मित्रों का अपेक्षित सहयोग प्राप्त होगा। परिश्रम का प्रतिफल प्राप्त होने से मन प्रसन्न होगा और कार्यों में मन अधिक लगेगा। प्रसन्नता, खुशी, विचारों में सकारात्मकता, जोश एवं पराक्रम में वृद्धि इत्यादि शुभफल भी प्राप्त होंगे। एकादश भाव का वेध स्थान अष्टम भाव होता है। इस प्रकार मीन राशि में अन्य ग्रहों के गोचर के फलस्वरूप गुरु के शुभगोचरफल में कमी का अनुभव होगा। मीन में शनि सम्पूर्ण गोचरावधि में रहेगा साथ ही उसकी अष्टम ढैया भी रहेगी। साथ ही 29 मई से राहु-केतु क्रमश: सप्तम एवं लग्न पर गोचर करेंगे, जो कि शुभफलप्रद नहीं है। इससे भी गुरु के शुभफलों में कमी आएगी। फिर भी गुरु के शुभफलों का अनुभव अवश्य होगा।
एकादश भाव में स्थित गुरु की शुभ दृष्टि तृतीय, पंचम एवं सप्तम भाव पर रहेगी। तृतीय भाव पर दृष्टि के फलस्वरूप भाई-बहिनों से सम्बन्धों में घनिष्ठता बढेगी तथा उनसे अपेक्षित सुख की प्राप्ति होगी। उत्साह, पराक्रम एवं सकारात्मक विचारों में वृद्धि होगी। लोगों से अच्छे परामर्श की प्राप्ति होगी, जिससे आपको लाभ मिलेगा। पंचम भाव पर दृष्टि अध्ययन आदि के सम्बन्ध में शुभफलदायक है, तो वहीं प्रतियोगिता परीक्षार्थियों को भी अच्छा लाभ मिलेगा। संतति से संबंधित कोई शुभ समाचार की प्राप्ति हो सकती है। संतति और विवाह की अभिलाषा भी पूर्ण हो सकती है। वैवाहिक सुख के योग बन रहे हैं। यह अवश्य है कि सप्तमस्थ राहु संबंधों में कुछ तनाव भी उत्पन्न कर सकता है।
स्वास्थ्य – विगत गोचरावधि में जो स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ परेशान कर रही थीं, उनमें राहत का अनुभव होगा। दीर्घकालिक रोगों में भी राहत मिलेगी। मानसिक रूप से भी आप सुदृढ़ता एवं आत्मविश्वास का अनुभव करेंगे। जोश एवं पराक्रम बढ़ा-चढ़ा रहेगा तथा विचारों में सकारात्मकता अधिक रहेगी। अवसाद आदि की समस्या दूर होगी। यह अवश्य है कि शनि की अष्टम ढैया के चलते स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, परन्तु एकादश भाव का गुरु उन समस्याओं में राहतकारी होगा।
परिवार एवं समाज – घर में मांगलिक कार्यक्रमों का आयोजन सम्पन्न होगा। विवाहयोग्य युवक-युवतियों का विवाह होगा, वहीं सन्तान की अभिलाषा रखने वाले दम्पतियों की भी मनोकामना पूर्ण होगी। विगत कुछ समय से चली आ रही पारिवारिक समस्याएँ भी दूर होंगी। परिजनों के सहयोग से महत्त्वपूर्ण उपलब्धि अर्जित होगी। नए मित्र बनेंगे तथा उनसे लाभ की भी प्राप्ति होगी। सामाजिक मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों में सक्रियता बढ़ेगी। सम्मान एवं पुरस्कार के योग बन रहे हैं।
वित्तीय स्थिति – एकादश भाव में गुरु का गोचर वित्तीय मामलों में शुभफलदायक है। आय में वृद्धि के अवसर आएँगे। आय के नवीन स्रोतों का सृजन होगा। अटके हुए धन की प्राप्ति सम्भव होगी। वहीं, पूर्व में किए गए धन-निवेश से अच्छे लाभ की प्राप्ति सम्भव होगी। धन निवेश की दृष्टि से भी समय प्रायः अनुकूल है। भूमि, भवन, वाहन या भौतिक सुख-सुविधा की वस्तु क्रय करने के योग बन रहे हैं।
नौकरी एवं व्यवसाय – नौकरीपेशा वालों के लिए पदोन्नति आदि के अवसर आएँगे। वेतन में अपेक्षित वृद्धि होने से मन प्रसन्न होगा। उच्चाधिकारियों से अच्छे सम्बन्ध बनेंगे तथा उनसे प्रशंसा एवं पुरस्कार प्राप्ति सम्भव होगी। कार्यालय में आपकी मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। आपके योगदान को मान्यता मिलेगी। सहकर्मियों एवं अधीनस्थों से अच्छे सम्बन्ध बनेंगे और उनसे अपेक्षित सहयोग की प्राप्ति सम्भव होगी।
व्यवसाय की दृष्टि से भी समय अनुकूल फलप्रद है। धन-निवेश से अपेक्षित लाभ की प्राप्ति सम्भव होगी। व्यापार विस्तार के अवसर आएँगे, वहीं व्यवसाय में अपेक्षित उन्नति होने से मन प्रसन्न होगा। पूर्व में चल रही समस्याएँ दूर होने से भी सन्तोष का अनुभव होगा। नवीन साझेदार मिलेंगे और उनके सहयोग से व्यापार का विस्तार सम्भव होगा।
अध्ययन एवं परीक्षा – विद्यार्थियों की दृष्टि से भी गुरु की यह गोचरावधि अनुकूल फलप्रद रहनी चाहिए। अध्ययन सुचारू रह पाएगा तथा कक्षा, संस्थान एवं परीक्षा में आपका प्रदर्शन बेहतर रहेगा। अपेक्षित परीक्षा परिणाम प्राप्त होने से मन प्रसन्न रहेगा। गुरुजनों से भी अच्छे सम्बन्ध बनेंेगे तथा सहपाठियों का भी अध्ययन में सहयोग प्राप्त होगा। प्रतियोगिता परीक्षार्थियों को इस गोचरावधि में शुभ समाचारों की प्राप्ति सम्भव है। उनका प्रदर्शन बेहतर रहेगा तथा रोजगार प्राप्ति सम्भव है।
उपाय – गुरु के शुभफलों में वृद्धि के निम्नलिखित उपाय हैं ः
1. सातमुखी, आठमुखी एवं दसमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
2. लक्ष्मीनारायण जी की पूजा-उपासना करनी चाहिए।
3. बृहस्पति का सत्ताईसा यन्त्र की नित्य पूजा करें।
4. माता–पिता के नित्य चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिए।
5. आध्यात्मिक गुरु बनाएँ और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
6. एक या अधिक बार किसी वैष्णव तीर्थस्थल की यात्रा माता–पिता को करवानी चाहिए।•