23 जून को आ रहा है ऐसा योग जिसने करवायी थी महाभारत!
जी हाँ, कई वर्षों में बनने वाला योग 23 जून को आ रहा है, जिसे महाभारत युद्ध के लिए भी उत्तरदायी माना जाता है। विद्वान् युद्ध आदि की आशंका अब भी देख रहे हैं। यह योग युद्ध और आपदा से जनहािन के लिए जाना जाता है। राजनीतिक उठा-पटक की आशंका भी जतायी जा रही है। 1945 और 1948 में भी यह योग था, जिसने हिरोशिमा और नागासाकी जैसी मानवीय इतिहास की भीषण त्रासदी दी, तो वहीं भारत में साम्प्रदायिक दंगों में लाखों लोग काल कलवित हुए। इसके साथ ही इस दौरान एशिया और अफ्रिका में ब्रिटिश साम्राज्य समाप्त होने लगा। यह योग है 13 दिवसीय पक्षदोष। तेइस जून से आरम्भ हो रहे कृष्णपक्ष में प्रतिपदा और चतुर्दशी तिथि क्षय होने के कारण केवल तेरह ही दिन हैं। यह पक्ष तेइस जून से आरम्भ होकर पाँच जुलाई तक रहेगा।
ज्योतिर्निबन्ध में तेरह दिवसीय पक्षयोग को रौरवकालयोग कहा गया है। संहिता ग्रन्थों में इसके अशुभफल बताए गए हैं। 13 दिन के पक्ष का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत में मिलता है। महाभारतयुद्ध के समय तेरह दिन का ही पक्ष था अौर उसमें ग्रहण भी था। इतिहास में देखे, तो उन्नीस सौ पैंतालीस से उन्नीस सौ अडतालीस के मध्य भारत ने जो विभाजन की विभीषिका तथा पाकिस्तान से युद्ध की त्रासदी के साथ-साथ हिंसा और अस्थिरता देखी है, उस दौरान दो पक्ष तेरह दिवसीय थे। उन्नीस सौ पैंतालीस में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष तथा उन्नीस सौ अडतालीस में वैशाख शुक्लपक्ष तेरह दिवसीय थे। सन् उन्नीस सौ बासठ में आषाढ कृष्णपक्ष तेरह दिन का था, जिसने भारत को चीन से युद्ध का सामना करना पडा। उन्नीस सौ उनयासी में ज्येष्ठ कृष्णपक्ष तेरह दिवसीय था, उस वर्ष भारत में राजनीतिक अस्थिरता थी। इसी प्रकार उन्नीस सौ बयासी में िद्वतीय आश्विन कृष्णपक्ष तेरह दिवसीय था, उस वर्ष भारत को पंजाब और पूर्वोत्तर में भीषण आतंकवादी घटनाओं का सामना करना पडा। सन् उन्नीस सौ नब्बे में भी तेरह दिवसीय पक्ष था। उसके एक वर्ष के भीतर भारत को राजनीतिक अस्थिरता के साथ-साथ मण्डल-कमण्डल की राजनीति का सामना करना पडा, तो वहीं भारत की अर्थव्यवस्था दिवालिये के कगार पर आ पहुँची थी, जिसमें भारत को विदेशों में सोना गिरवी रखना पडा। सन् दो हजार इक्कीस में भाद्रपद शुक्लपक्ष तेरह दिवसीय था और उस वर्ष भारत कोरोना की विभीषिका झेल रहा था।
तेरह दिन के पक्ष का परिणाम प्राय सम्पूर्ण वर्ष झेलना पडता है। पिछले लगभग 100 वर्षों की घटनाओं को देखते हुए इस वर्ष भी इस तेरह दिवसीय पक्ष के चलते राजनीतिक अस्थिरता, मँहगाई एवं अर्थव्यवस्था में मंदी, प्राकृतिक आपदा तथा सीमाओं पर तनाव जैसी समस्याओं की आशंका भारत के सन्दर्भ में व्यक्त की जा रही है, वहीं वैश्विक स्तर पर युद्धों एवं प्राकृतिक आपदाओं के चलते जनहानि की भी आशंका बतायी जा रही है। हालांकि कुछ वर्ष ऐसे भी हैं, जिनमें तेरह दिवसीय पक्ष होने पर भी कोई अनहोनी घटना देखने को नहीं मिली। ऐसी वर्षों में उन्नीस सौ इक्यावन, उन्नसी सौ उनसठ, उन्नीस सौ तिरानवें, दो हजार पाँच, दो हजार सात, दो हजार दस आदि वर्ष भी हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि यह वर्ष भी सामान्य रूप से ही व्यतीत हो।
मुहूर्त में भी तेरह दिवसीय पक्ष को शुभ नहीं माना जाता, परन्तु ज्योतिर्निबन्ध में कश्यप का एक कथन मिलता है, जिसमें कहा गया है कि मुहूर्त लग्न में केन्द्र या त्रिकोण में शुभग्रह हों, तो तेरह दिवसीय पक्ष के दौरान भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। हालांकि इस परिहार वाक्य के होने पर भी पिछले दशक तक तेरह दिवसीय पक्ष को मुहूर्त में वर्जित ही माना गया, परन्तु पिछले आठ-दस साल से पंचांगकार कश्यप के परिहार वाक्य को लागू करते हुए तेरह दिवसीय पक्ष में मुहूर्त देने लगे हैं। यह विडियो आपको अच्छा लगा हो, तो लाइक और शेयर करें तथा ऐसी ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त करने के लिए चैनल को सब्सक्राइब करें।