धनत्रयोदशी
कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी धनत्रयोदशी के रूप में जानी जाती है। इसी दिन चाँदी के बर्तन खरीदने का विधान है। सायंकाल में यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है। इस दीपदान से असामयिक मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। इस पर्व पर किए जाने वाले प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं :
1. कुबेर का पूजन (10 नवम्बर, 2023)।
2. बर्तन आदि नवीन वस्तुओं का क्रय (10 नवम्बर, 2023)।
3. सायंकालीन दीपदान (10 नवम्बर, 2023)।
4. आरोग्य के देवता धन्वन्तरि का पूजन व जयन्ती उत्सव (11 नवम्बर, 2023)।
धनतेरस पर धनप्रदाता कुबेर के पूजन का भी प्रचलन है। कुबेर धनाध्यक्ष हैं। वे देवताओं के खजांची हैं। वे सभी प्रकार की निधियों के स्वामी हैं। स्थायी धन प्राप्ति के लिए भी उनका पूजन किया जाता है। उनकी कृपा प्राप्ति से धनागम की वृद्धि होती है और धन संचय सम्भव होता है।
धनत्रयोदशी पर बहुमूल्य वस्तुएँ, बर्तन, आभूषण, दैनिक उपयोग की वस्तुएँ, वाहन, भूमि, भवन इत्यादि का क्रय किया जाता है। सामान्यतः इस प्रकार का क्रय मध्याह्न एवं अपराह्ण में किया जाता है। इस दिन चाँदी एवं पीतल के बर्तन लाना विशेष शुभ माना गया है। मान्यता है कि घर में नया बर्तन लाने से सौभाग्य एवं समृद्धि की वृद्धि होती है। आगामी वर्ष में धन-धान्य एवं सम्पदा बनी रहती है।
धनत्रयोदशी से जुड़ी मान्यताओं में यह भी है कि इस दिन धन का आगमन होना चाहिए, गमन नहीं। इसलिए इस दिन उधार आदि देना निषिद्ध बताया गया है। साथ ही, प्रयास यह भी रहता है, कि जो भी वस्तुएँ इस दिन खरीदी जाएँ, वे उधार में खरीदी जाएँ।
धनत्रयोदशी अबूझ मुहूर्त के रूप में भी प्रतिष्ठित हो चुकी है। इसलिए इस दिन व्यापार आरम्भ आदि मांगलिक कार्य सम्पन्न किए जाते हैं।
धनत्रयोदशी पर सायंकाल अर्थात् प्रदोषकाल में दीपदान किया जाता है। घर के मुख्य द्वार के सामने चारमुखा दीपक जलाया जाता है। मान्यता है कि इस प्रकार दीपदान करने से दीर्घायु प्राप्त होती है और अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।
इस वर्ष कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी 10 नवम्बर को मध्याह्न में आ रही है तथा 11 नवम्बर को सूर्योदयकालिक होकर मध्याह्न में 13:58 बजे समााप्त होगी। इसलिए धन्वन्तरि जयन्ती अगले दिन अर्थात् 11 नवम्बर को मनाई जाएगी और उस दिन प्रातःकाल अथवा मध्याह्न में धन्वन्तरि देवता का पूजन किया जाना शास्त्रसम्मत है। ये भगवान् विष्णु के अवतार एवं आरोग्य के देवता माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को समुद्र मन्थन के दौरान धन्वन्तरि का प्राकट्य हुआ था। इसीलिए इस तिथि को धन्वन्तरि जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है।