आँवला नवमी
कार्तिक शुक्ल नवमी को आँवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और आँवले के वृक्ष का पूजन किया जाता है। यह ‘कूष्माण्ड नवमी’ अथवा ‘अक्षय नवमी’ और ‘धात्री नवमी’ के रूप में भी जानी जाती है।
अक्षय कूष्माण्ड नवमी
कार्तिक शुक्ल नवमी को अक्षय कूष्माण्ड नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रातःकाल व्रत का संकल्प लिया जाना चाहिए। तदुपरान्त स्नान-ध्यान आदि करने के पश्चात् आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ‘ॐ धात्र्यै नमः’ मन्त्र से षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्रों से आँवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें :
पिता पितामहाश्चानये अपुत्रा ये च गोत्रिणः।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।
इसके बाद आँवले के वृक्ष के तने में निम्नलिखित मन्त्र से सूत्र बाँधें :
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै
नमो नमः। सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोऽस्तु ते।।
इसके बाद कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आँवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्नलिखित मन्त्र से उसकी प्रदक्षिणा करें :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके अनन्तर आँवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण-भोजन भी करवाना चाहिए और अन्त में स्वयं भी आँवले के वृक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अन्दर रत्न सुवर्ण, रजत अथवा रुपया आदि रखकर निम्नलिखित संकल्प करें :
ममाखिल-पापक्षय-पूर्वक-सुख-सौभाग्यदीनामुत्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डं दानमहं करिष्ये।
तदन्तर विद्वान् तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दें और निम्नलिखित प्रार्थना करें :
कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितॄणां तारणाय च।।
पितरों के शीतनिवारण के लिए यथाशक्ति कम्बल आदि ऊर्णवस् (ऊनी वस्त्र) भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिए।