कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को गुरु नानक जयन्ती मनायी जाती है। गुरु नानक सिख धर्म के संस्थापक हैं। इनका जन्म कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा संवत् 1526 (1469 ई.) में तलवंडी (ननकाना साहिब) में कालूचन्द पटवारी के यहाँ माता तृप्ताजी के उदर से हुआ था। गुरु नानक बचपन से ही शान्त स्वभाव के थे।
नानकजी को शिक्षा के लिए जहाँ भेजा, वहीं उन्होंने अपने शिक्षक को ही अपना शिष्य बना लिया। संवत् 1544 में इनका विवाह माता सुलक्षणा देवी के साथ हुआ।
गुरु नानकजी ने युवावस्था में 1542 से दौलत खाँ लोदी के मोदीखाने में नौकरी कर ली, लेकिन उनका ध्यान ईश्वर और ईश्वर भक्तों की ओर ही रहता था। वे सन्तों एवं दीन-दु:खियों को मोदीखाने से सामग्री दे दिया करते थे। संवत् 1554 तक उन्होंने मोदीखाने में नौकरी की। तत्पश्चात् उन्होंने वैराग्य ले लिया और ईश्वर की आराधना में लग गए। उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द का उपदेश दिया।
संवत् 1554 से ही उन्होंने देश की यात्राएँ कीं। उनकी चार यात्राएँ प्रसिद्ध हैं। पहली यात्रा में वे एमनाबाद, हरिद्वार, दिल्ली, काशी, गया, जगन्नाथपुरी आदि गए। दूसरी यात्रा में वे आबू से लेकर रामेश्वरम् एवं सिंहल द्वीप तक गए। तीसरी यात्रा में सरमौर, गढ़वाल, हेमकूट, गोरखपुर, सिक्किम, भूटान, तिब्बत आदि स्थानों पर गए। चौथी यात्रा उन्होंने पश्चिम दिशा की ओर मक्का तक पहुँचे। 25 वर्ष तक भ्रमण करने के उपरान्त संवत् 1579 में करतारपुर में वे रहने लगे और वहीं 22 सितम्बर, 1539 ई. (संवत् 1596) को उन्होंने शरीर त्याग दिया। उन्होंने अपना शिष्य अंगदजी को बनाया, जो सिख धर्म के दूसरे गुरु हैं।
