Ahoi Ashtami [अहोई अष्टमी]
इस साल अहोई अष्टमी का व्रत 05 नवंबर रविवार के दिन रखा जाएगा। यह व्रत माताओं द्वारा अपनी संतान की तरक्की और दीर्घायु के लिए किया जाता है।
कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी अहोई अष्टमी के रूप में मनायी जाती है। इस दिन पुत्रवती स्त्रियाँ उपवास करती हैं और बिना अन्न-जल ग्रहण किए सायंकाल चन्द्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करती हैं। इस दिन सायंकाल दीवार पर आठ कोणों वाली एक पुतली अंकित की जाती है, पुतली के पास ही स्याऊ माता एवं उसके बच्चे बनाए जाते हैं। यह व्रत पुत्र की कामना के लिए किया जाता है। सायंकाल व्रत-कथा का पाठन एवं श्रवण किया जाता है।
व्रत-कथा
प्राचीन काल की बात है। चम्पा नाम की एक स्त्री थी। उसे कोई सन्तान नहीं थी। एक दिन उसके घर एक वृद्धा आयी और उसकी व्यथा देखकर उसे अहोई अष्टमी का व्रत करने के लिए कहा। उसके परामर्शानुसार चम्पा ने अहोई अष्टमी का व्रत रखना शुरू कर दिया। चम्पा को देखकर उसकी पड़ोसन भी अहोई अष्टमी का व्रत करने लगी। अहोई माता ने चम्पा और उसकी पड़ोसन दोनों की परीक्षा लेनी चाही। अहोई माता ने दोनों को दर्शन देकर पूछा कि ‘तुम्हारी मनोकामना क्या है?’ चम्पा ने कहा कि ‘माता! आप सर्वज्ञ हैं। आप सभी कुछ जानती हैं। इसलिए मेरे बताने का क्या औचित्य होगा?’ दूसरी ओर चम्पा की पड़ोसन ने माता से पुत्र माँगा। तब अहोई माता ने दोनों को कहा कि ‘उत्तर दिशा में एक बाग में बहुत से बच्चे खेल रहे हैं। वहाँ जो तुम्हें अच्छा लगे उसे ले आना। यदि नहीं ला सके, तो तुम्हें सन्तान नहीं होगी।’ दोनों ही उस बगीचे में गयीं और बच्चों को पकड़ने लगीं। बच्चे उन्हें देखकर विलाप करने लगे और डरकर भागने लगे। इस सबसे द्रवित होकर चम्पा ने बच्चों को पकड़ने का विचार त्याग दिया। दूसरी ओर, उसकी पड़ोसन ने एक बच्चे को पकड़ लिया। बच्चा बुरी तरह रो रहा था, िफर भी पड़ोसन ने बच्चे को पकड़े रखा और उसे माता के समीप ले आयी। अहोई माता ने चम्पा के वात्सल्य को देखकर उसे पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया, तो दूसरी ओर उसकी पड़ोसन को संतानहीन होने का शाप दिया।