महालक्ष्मी का पूजन
दीपावली पर प्रदोषकाल (सूर्यास्त से 1 घण्टा 12 मिनट तक की अवधि) तथा स्थिर लग्न वृषभ एवं सिंह की महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है।
आवश्यक सामग्री
रोली, मौली, पान, सुपारी, अक्षत (साबुत चावल), गेहूँ, धूप, घी का दीपक, तेल का दीपक, खील, बतासे, शंख (दक्षिणावर्ती हो, तो उत्तम), घंटी, घिसा हुआ चन्दन, लक्ष्मी-गणेश की नई मूर्तियाँ, पाना (लक्ष्मी, गणेश एवं सरस्वती का संयुक्त चित्र), दूध, दही, शहद, शर्करा, घृत, गंगाजल, सिन्दूर, नैवेद्य, इत्र, यज्ञोपवीत, श्वेतार्क के पुष्प, शमीपत्र, दूर्वा, सर्वोषधि, पंचपल्वल, अष्टगन्ध, कमल का पुष्प, गन्ना, हल्दी की गाँठ, धनिया, गुड़, वस्त्र, कुंकुम, पुष्पमाला, ॠतुफल, कर्पूर, नारियल, इलायची, दूर्वा, चाँदी का वर्क, दक्षिणा, कलश, पाँच बड़े दीपक, 21 छोटे दीपक, रुई की बत्तियाँ, धूपपात्र, ताँबे या स्टील का लोटा, थाली, प्लेट, कुछ छोटी कटोरियाँ या दोने इत्यादि।
पूजा विधि
महालक्ष्मी पूजन में सर्वप्रथम आचमन, पवित्रीकरण, दीपक-शंख आदि का पूजन किया जाता है। तदुपरान्त संकल्प लेकर कलश, नवग्रह, षोडशमातृका आदि का पूजन कर भगवान् गणेश का षोडशोपचार पूजन किया जाता है। इन सबको करने के उपरान्त प्रधानपूजा के रूप में भगवती महालक्ष्मी का पूजन विस्तार से किया जाता है। इस सम्पूर्ण पूजा-विधि को यथायोग्य शीर्षकों के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।
आरम्भिक पूजा
आचमन : सर्वप्रथम निम्नलिखित मन्त्रों से तीन बार आचमन करें :
ॐ केशवाय नमः,
ॐ नारायणाय नमः,
ॐ माधवाय नमः।
अब निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए होठों को अँगूठे के अग्र भाग से पौंछते हुए हस्त प्रक्षालन करें :
ॐ हृषीकेशाय नमः।
ॐ गोविन्दाय नमः।
पवित्रीकरण : इसके पश्चात् निम्न मन्त्र से अपने ऊपर तथा पूजन सामग्री के ऊपर जल छिड़कें :
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
दीपक पूजन : अब स्वयं के बायीं ओर तेल का तथा दायीं ओर घी का दीपक जलाना चाहिए। घी के दीपक में सफेद रंग की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल रंग की बत्ती डालनी चाहिए। दीपक का पंचोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करनी चाहिए :
भो दीप! देवीरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत्।
यावत्कर्मसमाप्तिः स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव।।
स्वस्तिवाचन एवं संकल्प
स्वस्तिवाचन : दाहिने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्रों से स्वस्तिवाचन करें :
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।
ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्।।
ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः श्नप्त्रेस्थो विष्णोः स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि वैष्णवमसि विष्णवे त्वा।।
ॐ अग्निर्देवता-वातोदेवता-सूर्य्यो-देवता चन्द्रमा-देवता वसवो-देवता रुद्रो-देवता आदित्या-देवता मरुतो-देवता विश्वेदेवा-देवता बृहस्पतिः देवतेन्द्रो-देवता वरुणो-देवता।।
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तिरिक्ष शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिविर्श्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्व शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि।।
ॐ यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं न: कुरु प्रजाभ्योऽभयं न: पशुभ्य:। सुशान्तिर्भवतु।।
ॐ शान्तिः शान्तिः सुशान्तिर्भवतु। सर्वारिष्ट-शान्तिर्भवतु।।
अब हाथ में लिए हुए अक्षत-पुष्प सामने चौकी पर चढ़ा दें। स्वस्तिवाचन से घर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होकर सकारात्मक ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है तथा शरीर-मन आदि शुद्ध हो जाता है।
देवी-देवताओं का स्मरण : स्वस्तिवाचन के पश्चात् हाथ में पुष्प-अक्षत आदि लेकर निम्न मन्त्र के साथ गणपति आदि देवी-देवताओं का स्मरण करना चाहिए :
सुमुखश्चैक-दन्तश्च कपिलो गज-कर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्न-नाशो विनायकः।।
धूम्र-केतुर्गणाध्यक्षो भाल-चन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तय न जायते।।
शुक्लाम्बर-धरं देवं शशि-वर्ण चतुर्भुजम्।
प्रसन्न-वदनं ध्यायेत् सर्व विघ्नोपशान्तये।।
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके!
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि! नमोऽस्तु ते।।
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मी-नारायणाभ्यां नमः। उमा-महेश्वराभ्यां नमः। वाणी-हिरण्य-गर्भाभ्यां नमः। शची-पुरन्दराभ्यां नमः। मातृ-पितृ-चरण-कमलेभ्यो नमः। इष्ट-देवताभ्यो नमः। कुल-देवताभ्यो नमः। ग्राम-देवताभ्यो नमः। वास्तु-देवताभ्यो नमः। स्थान-देवताभ्यो नमः। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः। सिद्धिबुद्धि सहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
इस प्रकार उच्चारण कर हाथ में लिए हुए अक्षत, पुष्पादि को चौकी पर चढ़ा दें। विभिन्न देवताओं के स्मरण के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए गणपति, गुरु, सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सरस्वती इत्यादि को प्रणाम करना चाहिए :
विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वरान्।
सरस्वतीं प्रणम्यादौ सर्व-कार्यार्थ सिद्धये।।
हाथ में लिए हुए अक्षत और पुष्पों को चौकी पर समर्पित कर दें।
संकल्प : उपर्युक्त प्रक्रिया के पश्चात् दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प, दूर्वा, सुपारी, जल एवं दक्षिणा (नकदी) लेकर संकल्प करें :
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय-परार्धे श्रीश्वेत-वराह-कल्पे वैवस्वत-मन्वन्तरे अष्टाविंशति-तमे कलियुगे कलि-प्रथम-चरणे जम्बू-द्वीपे भारत-वर्षे आर्यावर्तैकदेशे ... (अपने नगर, गाँव आदि का नाम लें) नगरे/ग्रामे/क्षेत्रे 2080 वैक्रमाब्दे पिंगलनाम-संवत्सरे कार्तिक-मासे कृष्णपक्षे अमावस्याया-तिथौ रवि-वासरे प्रदोषकाले/सायंकाले/रात्रिकाले स्थिरलग्ने शुभ मुहूर्ते ... (अपने गोत्र का उच्चारण करें) गोत्रोत्पन्नो ... (अपने नाम का उच्चारण करें) शर्मा/वर्मा/गुप्तः अहं सपत्नीकस्य सकुटुम्बस्य सबान्धवस्य श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त फलवाप्ति-कामनया ज्ञाताज्ञात-कायिक-वाचिक-मानसिक-सकल-पाप-निवृत्ति-पूर्वकं मम सर्वापच्छान्ति-पूर्वक दीर्घायुष्य-बल पुष्टिनैरुज्यादि सकल-शुभफल प्राप्त्यर्थं सकल-सम्पदाम् उत्तरोत्तराभिवृद्ध्यर्थं विपुल-धनधान्य-प्राप्त्यर्थं, मम सपुत्रस्य सबांधवस्य अखिलकुटुम्ब-सहितस्य समस्त-भय-व्याधि-जरा-पीडा-मृत्यु परिहारेण, दैहिक-दैविक-भौतिक-ताप-त्रय-शमनार्थं धर्मार्थ-काम-मोक्ष-फल-प्राप्त्यर्थं सर्वत्र-यशो-विजयादि-लाभार्थं मनोकामना-सिद्ध्यर्थं अप्राप्त-लक्ष्मी प्राप्त्यर्थं, प्राप्त-लक्ष्मी-चिर-काल-संरक्षणार्थं, व्यापारे-व्यवसाये-राजद्वारे-लाभार्थं, श्रीमहालक्ष्मी-प्रसन्नार्थं यथोपलब्ध सामग्र्या श्रीमहालक्ष्मीपूजनं करिष्ये। तद् अंगत्वेन प्रथमं गणपत्यादिपूजनं करिष्ये।
उक्त संकल्प वाक्य पढ़कर जलाक्षतादि चौकी के समीप खालीपात्र में छोड़ दें।
गणपति स्थापना एवं पूजन
अब एक सुपारी लें। उसे जल से स्नान करवाकर उस पर मौली लपेटें और उसे चौकी पर थोड़े से चावल रखकर उसके ऊपर स्थापित कर दें। फिर उसमें भगवान् गणेश का आवाहन करें :
ॐ गणानां त्वा गणपतिहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिहवामहे निधीनां त्वा निधिपतिहवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
आवाहन के पश्चात् निम्न मन्त्र की सहायता से गणेश जी की प्रतिष्ठा करें और उन्हें आसन दें :
ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं, तनो त्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वदेवा स इह मादयन्तामो ॐ प्रतिष्ठ।। गजाननं! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्।। प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि। श्रीगणेशाय नमः।
ऐसा कहते हुए अक्षत छोड़ दें। अब भगवान् गणेश का पंचोपचार पूजन करें :
ॐ गणपतये नमः। गन्धं समर्पयामि।। (रोली लगाएँ)
ॐ गणपतये नमः। पुष्पं समर्पयामि।। (पुष्प चढ़ाएँ)
ॐ गणपतये नमः। धूपं आघ्रापयामि।। (धूप दिखाएँ)
ॐ गणपतये नमः। दीपं दर्शयामी।। (दीपक दिखाएँ)
ॐ गणपतये नमः। नैवेद्यं निवेदयामि।। (नैवेद्य चढ़ाएँ)
अन्त में हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र के साथ नमस्कार करें :
ॐ गणपतये नमः। प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारं समर्पयामि।।
अब पूजन को गणेश जी को समर्पित करें :
अनेन पूननेन श्री गणपतिः प्रीयताम्।
नवग्रह स्थापना एवं पूजन
नवग्रह स्थापना के लिए चौकी पर एक ओर नवग्रहों का आवाहन एवं स्थापना करें। अब हाथ में अक्षत एवं पुष्प लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करें :
ॐ सूर्य-चन्द्र-मंगल-बुध-बृहस्पति-शुक्र-शनिश्चर-राहु-केतु-नव-ग्रहेभ्यो नमः। ॐ नव-ग्रहाः! इहागच्छ, इहतिष्ठ, मम पूजां गृहाण।
अब नवग्रहों का पंचोपचार पूजन करें :
ॐ सूर्यादि-नवग्रहेभ्यो नमः। गन्धं समर्पयामि।। (रोली लगाएँ)
ॐ सूर्यादि-नवग्रहेभ्यो नमः। पुष्पं समर्पयामि।। (पुष्प चढ़ाएँ)
ॐ सूर्यादि-नवग्रहेभ्यो नमः। धूपं आघ्रापयामि।। (धूप दिखाएँ)
ॐ सूर्यादि-नवग्रहेभ्यो नमः। दीपं दर्शयामी।। (दीपक दिखाएँ)
ॐ सूर्यादि-नवग्रहेभ्यो नमः। नैवेद्यं निवेदयामि।। (नैवेद्य चढ़ाएँ)
अन्त में हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र के साथ नमस्कार करें :
ॐ सूर्यादि-नवग्रहेभ्यो नमः। प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।।
ब्रह्मा-मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानुः शशि भूमिसुतोबुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनि-राहु-केतवः, सर्वे ग्रहाः शान्ति करा भवन्तु।।
अब पूजन का समर्पण करें :
अनेन पूजनेन सूर्यादि-नवग्रहाः प्रीयताम्।
श्रीगणेश पूजन
इस वर्ष के लक्ष्मीपूजन के लिए लायी हुई गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों में सर्वप्रथम गणेश की पूजा होगी।
श्रीगणेश का ध्यान : हाथ में अक्षत एवं पुष्प लेकर भगवान् गणेश की नवीन मूर्ति के समक्ष ध्यान करेें :
गजाननं भूत-गणादि-सेवितं
कपित्थ-जम्बूफल-चारु-भक्षणम्।
उमा-सुतं शोक-विनाश-कारकं
नमामि विघ्नेश्वर-पाद-पंकजम्।।
अक्षत एवं पुष्प मूर्ति के समक्ष समर्पित करें। इसके पश्चात् भगवान् गणेश का आवाहन करें।
आवाहन-प्रतिष्ठा-आसन : हाथ में अक्षत लेकर भगवान् गणेश की नवीन मूर्ति का ध्यान करें :
ॐ गणानां त्वा गणपतिहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिहवामहे निधीनां त्वा निधिपतिहवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च।
अक्षत समर्पित करें तथा निम्नलिखित मन्त्र से पुनः अक्षत लेकर प्राण-प्रतिष्ठा करें :
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
गजाननं! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्।।
प्रतिष्ठापूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि। श्रीगणेशाय नमः।
ऐसा कहते हुए अक्षत समर्पित करें।
श्रीगणेश पूजन : तीन बार जल के छींटे दें और बोलें :
श्रीगणेशाय नमः। पाद्यं, अर्घ्यं, आचमनीयं समर्पयामि।
श्रीगणेशाय नमः, सर्वाङ्गेस्नानं समर्पयामि। जल के छींटे दें।
श्रीगणेशाय नमः, सर्वाङ्गे पंचामृतस्नानं समर्पयामि। पंचामृत से स्नान कराएँ।
पंचामृतस्नानान्ते सर्वाङ्गे शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
श्रीगणेशाय नमः, सुवासितम् इत्रं समर्पयामि। इत्र चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, वस्त्रं समर्पयामि। वस्त्र अथवा मौली चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि। यज्ञोपवीत चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि। जल के छींटे दें।
श्रीगणेशाय नमः, गन्धं समर्पयामि। रोली अथवा लाल चन्दन चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, अक्षतान् समर्पयामि। चावल चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, पुष्पाणि समर्पयामि। पुष्प चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, मंदारपुष्पाणि समर्पयामि। सफेद आक के फूल चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, शमीपत्राणि समर्पयामि। शमीपत्र चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, दूर्वांकुरान् समर्पयामि। दूर्वा चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, सिंदूरं समर्पयामि। सिन्दूर चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, धूपम् आघ्रापयामि। धूप करें।
श्रीगणेशाय नमः, दीपं दर्शयामि। दीपक दिखाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, नैवेद्यं निवेदयामि। प्रसाद चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि। जल के छींटे दें।
श्रीगणेशाय नमः, ताम्बूलं समर्पयामि। पान, सुपारी, इलायची आदि चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, नारिकेलफलं समर्पयामि। नारियल चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, ॠतुफलं समर्पयामि। ॠतुफल चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, दक्षिणां समर्पयामि। नकदी चढ़ाएँ।
श्रीगणेशाय नमः, कर्पूरनीराजनं समर्पयामि। कर्पूर से आरती करें।
श्रीगणेशाय नमः, नमस्कारं समर्पयामि। नमस्कार करें।
श्रीगणेश प्रार्थना : पूजन के उपरान्त हाथ जोड़कर निम्नलिखित प्रार्थना करें :
विघ्नेश्वराय वरदाय सुर-प्रियाय,
लम्बोदराय सकलाय जगत्-हिताय।
नागाननाय श्रुति-यज्ञ-विभूषिताय,
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
श्रीगणेश पूजन समर्पण : अब हाथ में पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र को उच्चारित करते हुए समस्त पूजनकर्म भगवान् गणेश को अर्पित कर दें :
गणेशपूजने कर्म यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तेन सर्वेण सर्वात्मा प्रसन्नोऽस्तु सदा मम।।
अनया पूजया महागणपतिः प्रीयतां न मम।।
प्रधानपूजा : श्री महालक्ष्मी पूजन
उक्त समस्त प्रक्रिया के पश्चात् प्रधान पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। पूजन से पूर्व नवीन मूर्ति, यन्त्र तथा द्रव्यलक्ष्मी (स्वर्ण अथवा चाँदी के सिक्के) आदि में पूजन चाहिए।
श्रीमहालक्ष्मी का ध्यान : तदुपरान्त हाथ में लाल कमल पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र से देवी लक्ष्मी का ध्यान करें :
सरसिज-निलये सरोज-हस्ते धवल-तरांशुकगन्ध-माल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे! मनोज्ञे त्रिभुवन-भूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।
भगवती हरिप्रिये! आप कमल वन में निवास करने वाली हैं। आपके हाथों में कमल सुशोभित है। आप अत्यन्त उज्ज्वल वस्त्र, गन्ध और माला आदि से शोभा पा रही हैं। आपकी झाँकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हे देवी! आप मुझ पर प्रसन्न हो जाएँ।
इसके उपरान्त ध्यान के लिए देवी को कमल पुष्प अर्पित करें।
आवाहन-प्रतिष्ठा-आसन : सर्वप्रथम हाथ में पुष्प लेकर महालक्ष्मी का निम्नलिखित मन्त्र के साथ नवीन मूर्ति आदि में आवाहन करें :
आगच्छ देव-देवेशि! तेजोमयि महालक्ष्मि।
क्रियमाणां मया पूजां, गृहाण सुर-वन्दिते!
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। महालक्ष्मीदेवीं आवाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
तदुपरान्त निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण कर अक्षत छोड़ते हुए प्रतिष्ठा करें :
ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं,
तनो त्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वदेवा स इह मादयन्तामो३ म्प्रतिष्ठ।।
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः। प्रतिष्ठार्थे अक्षतान् समर्पयामि।
अब निम्न मन्त्र से देवी को आसन अर्पित करें :
तप्त-काञ्चन-वर्णाभं मुक्ता-मणि-विराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आसनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
आसन के लिए कमल पुष्प अर्पित करें।
पाद्य : निम्नलिखित मन्त्र से देवी को चरण धोने हेतु जल अर्थात् पाद्य (जल में चन्दन, पुष्प आदि मिलाकर) अर्पित करें :
गङ्गादि-तीर्थसम्भूतं गन्ध-पुष्पादिभिर्युतम्।
पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पादयो पाद्यं समर्पयामि।।
अर्घ्य : इस मन्त्र से देवी के मस्तक का अभिषेक हेतु अर्घ्य अर्पित करें (अष्टगंध युक्त जल से) :
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम्।
अर्घ्यं गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अर्घ्यं समर्पयामि।। आचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान : इस मन्त्र से देवी को स्नान कराएँ :
मन्दाकिन्याः मानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः।
स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। स्नानं समर्पयामि।।
पंचामृत स्नान: निम्नलिखित मन्त्र से देवी को पंचामृत (घी, शहद, दुग्ध, शर्करा, दही) स्नान कराएँ :
पयो दधि घृतं चैव मधु-शर्करयान्वितम्।
पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पंचामृत-स्नानं समर्पयामि।।
शुद्धोदक स्नान : निम्नलिखित मन्त्र से देवी को शुद्धोदक (शुद्ध जल से) स्नान कराएँ :
मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्व-पाप-हरं शुभम्।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।।
शुद्धोदक-स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।।
ऐसा कहते हुए आचमन हेतु जल छोड़ें।
वस्त्र-उपवस्त्र : निम्न मन्त्र से देवी को वस्त्र एवं उपवस्त्र (वस्त्राभाव में मौली चढ़ाएँ) अर्पित करें :
दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि।।
आभूषण : निम्नलिखित मन्त्र से देवी को आभूषण अर्पित करें :
रत्न-कङ्कण-वैदूर्य-मुक्ता-हारादि-कानि च।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। आभूषणं समर्पयामि।।
आभूषण के अभाव में मौली अर्पित करें।
गन्ध : निम्नलिखित मन्त्र से देवी को गन्ध (रोली-चन्दन) अर्पित करें :
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्।
विलेपनं सुरश्रेष्ठं चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। गन्धं समर्पयामि।।
सिन्दूर : निम्नलिखित मन्त्र से देवी को सिन्दूर अर्पित करें :
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूर-तिलक-प्रिये।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि।।
कुंकुम : निम्न मन्त्र से कुंकुम अर्पित करें :
कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम्।
अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। कुङ्कुमं समर्पयामि।।
अक्षत : निम्नलिखित मन्त्र से देवी को अक्षत (चावल) अर्पित करें :
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। अक्षतान् समर्पयामि।।
अक्षत के स्थान पर या साथ में अपनी परम्परा के अनुरूप हल्दी की गाँठ या धनिया अर्पित कर सकते हैं।
पुष्प एवं पुष्पमाला : निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करें :
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि।।
अंग पूजन : अब निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए माँ लक्ष्मी के निमित्त अंग पूजा करें। प्रत्येक मन्त्र को पढ़कर कुछ गन्धाक्षत-पुष्प सामने मण्डल पर चढ़ाएँ :
1. ॐ चपलायै नम:, पादौ पूजयामि।
2. ॐ चञ्चलायै नम:, जानुनी पूजयामि।
3. ॐ कमलायै नम:, कटिं पूजयामि।
4. ॐ कात्यायन्यै नम:, नाभिं पूजयामि।
5. ॐ जगन्मात्रे नम:, जठरं पूजयामि।
6. ॐ विश्ववल्लभायै नम:, वक्ष:स्थलं पूजयामि।
7. ॐ कमलवासिन्यै नम:, हस्तौ पूजयामि।
8. ॐ पद्माननायै नम:, मुखं पूजयामि।
9. ॐ कमलपत्राक्ष्यै नम:, नेत्रत्रयं पूजयामि।
10. ॐ श्रियै नम:, शिर: पूजयामि।
11. ॐ महालक्ष्म्यै नम:, सर्वाङ्गं पूजयामि।
अष्टसिद्धि पूजन : अंगपूजन के पश्चात् अष्टसिद्धियों का पूजन करें। पूजन में निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए गन्धाक्षत-पुष्प सामने चौकी पर चढ़ाएँ :
1. ॐ अणिम्ने नम:।
2. ॐ महिम्ने नम:।
3. ॐ गरिम्णे नम:।
4. ॐ लघिम्ने नम:।
5. ॐ प्राप्त्यै नम:।
6. ॐ प्राकाम्यै नम:।
7. ॐ ईशितायै नम:।
8. ॐ वशितायै नम:।
अष्टलक्ष्मी पूजन : अष्टसिद्धियों के पूजन के पश्चात् माँ लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपों का पूजन करना चाहिए। निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए अष्टलक्ष्मियों के पूजन के लिए गन्धाक्षत-पुष्प सामने चौकी पर चढ़ाएँ :
1. ॐ आद्य-लक्ष्म्यै नम:।
2. ॐ विद्या-लक्ष्म्यै नम:।
3. ॐ सौभाग्य-लक्ष्म्यै नम:।
4. ॐ अमृत-लक्ष्म्यै नम:।
5. ॐ काम-लक्ष्म्यै नम:।
6. ॐ सत्य-लक्ष्म्यै नम:।
7. ॐ भोग-लक्ष्म्यै नम:।
8. ॐ योग-लक्ष्म्यै नम:।
धूप : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को सुगंधित धूप अर्पित करें :
वनस्पति-रसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। धूपम् आघ्रापयामि।।
दीप : निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को दीप दिखाएँ :
साज्यं च वर्ति-संयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेशि त्रैलोक्य-तिमिरापहम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। दीपं दर्शयामि।।
नैवेद्य : किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर नैवेद्य (प्रसाद) रखें तथा उस पर लौंग का जोड़ा अथवा इलायची रखें। तदुपरान्त निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को उक्त समस्त सामग्री अर्पित करें :
शर्कराखण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च।
आहारं भक्ष्य-भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। नैवेद्यं निवेदयामि।।
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा।
ॐ समानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा।
ॐ व्यानाय स्वाहा।।
उत्तरापाऽनार्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि।
ऐसा कहते हुए जल अर्पित करें।
नैवेद्य में अपने अपनी परम्परा के अनुसार गुड़ आदि भी अर्पित किया जा सकता है।
ॠतुफल : अग्रलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को ॠतुफल एवं गन्ना अर्पित करें :
इदं फलं मया देवि! स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। ॠतुफलं समर्पयामि।।
ताम्बूल : अग्रलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए माता लक्ष्मी को ताम्बूल अर्पित करें :
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्ली-दलैर्युतम्।
एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि।।
दक्षिणा : अग्रलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए माँ लक्ष्मी को दक्षिणा (नकद पैसे) अर्पित करें :
हिरण्यगर्भ-गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:।
अनन्त-पुण्य-फलदमत: शान्तिं प्रयच्छ मे।।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। पूजासाफल्यार्थं दक्षिणां समर्पयामि।।
आरती-पुष्पांजलि-प्रदक्षिणा : अब घर के सभी लोग एकत्र होकर माँ लक्ष्मी की आरती करें। आरती के लिए एक थाली में रोली से स्वस्तिक बनाएँ। उस पर कुछ अक्षत और पुष्प डालकर गोघृत का चतुर्मुख दीपक स्थापित करें और माँ लक्ष्मी की शंख, घंटी, डमरू आदि के साथ आरती करें। दीपक के पश्चात् क्रमशः कर्पूर, धूप, जलशंख एवं वस्त्र की सहायता से आरती करें।
कदलीगर्भ-सम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्।
आरातिर्कमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव।।
अब सस्वर आरती गाएँ
जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत हर विष्णु धाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ॠषि गाता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
दुर्गा रूप निरंजिनि, सुख-सम्पति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
शुभ गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।
अब निम्नलिखित मन्त्र बोलें :
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि।।
आरती के पश्चात् पुष्पांजलि एवं प्रदक्षिणा करें :
नाना-सुगन्धि-पुष्पाणि यथा-कालोद्भवानि च।
पुष्पाञ्जलिर्मया दत्ता गृहाण परमेश्वरि।।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तर-कृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे।
ॐ महालक्ष्म्यै नम:। मन्त्रपुष्पांजलिं प्रदक्षिणां च समर्पयामि।।
पूजन समर्पण-क्षमा प्रार्थना : अब माँ लक्ष्मी के समक्ष दण्डवत् प्रणाम करें तथा अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा माँगें :
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात्।।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
कर्मणा मनसा वाचा पूजनं यन्मया कृतम्।
तेन तुष्टिं समासाद्य प्रसीद परमेश्वरि।।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि मां परमेशानि सर्वपापहरा भव।।
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहनिर्शं मया।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी।
निम्नलिखित का उच्चारण करते हुए महालक्ष्मी के समक्ष पूजन-कर्म को समर्पित करें और इस निमित्त जल अर्पित करें :
अनेन यथामिलितोपचार-द्रव्यैः कृत-पूजनेन श्रीलक्ष्मी-देवी प्रीयताम्।।
।। श्रीमहालक्ष्मीदेव्यै अर्पणमस्तु।।
देवी से सुख-समृद्धि, आरोग्य तथा वैभव की कामना करें। उसके पश्चात् घर के छोटे सदस्य बड़ों का आशीर्वाद लें। पूजन में प्रयुक्त जल के छींटे घर के प्रत्येक कक्ष में लगाएँ तथा आरती की थाली भी प्रत्येक कक्ष में ले जाएँ। इस दौरान ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः।’ मन्त्र का उच्चारण करें। इससे घर से नकारात्मक ऊर्जा एवं अलक्ष्मी का नाश होता है।
विसर्जन : अन्त में विसर्जन करना चाहिए। विसर्जन के अन्तर्गत गणेशजी एवं महालक्ष्मी का विसर्जन नहीं होता है। इनके अतिरिक्त अन्य आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं का विसर्जन होता है। इसी भावना को मन में रखते हुए आवाहित-प्रतिष्ठित व पूजित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मन्त्र से विसर्जित करना चाहिए :
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्। इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च।।
दीपमालिका पूजन : एक थाली में मध्य में चतुर्मुखी दीपक रखें और उसके चारों ओर 11-21-51 आदि शुभ अंकों में छोटे दीपक रखें और उन सबमें साफ रुई की वर्तिका (बत्ती) रखकर सरसों के तेल से पूरित कर लें। अब दीपस्थ देवता का ध्यान करें :
भो दीप! ब्रह्म-रूपस्त्वं ह्यन्धकार-विनाशकः!
गृहाण मया कृतां पूजां, ओजस्तेजः प्रवर्धय।।
इसके पश्चात् निम्नलिखित मन्त्रों से दीपमालिका का पूजन करें :
ॐ दीपावल्यै नमः। गन्धाक्षतं समर्पयामि।। (रोली-चावल लगाएँ)
ॐ दीपावल्यै नमः। पुष्पाणि समर्पयामि।। (पुष्प चढ़ाएँ)
ॐ दीपावल्यै नमः। नैवेद्यं निवेदयामि।। (खील चढ़ाएँ)
इसके पश्चात् दीपमालिका को नमस्कार करें तथा थाली के चारों ओर थोड़ा-सा जल हाथ में लेकर छोड़ें। अब दीपमालिका में से दीपक घर के मुख्यद्वार, रसोईघर एवं अन्य कक्षों, समीप के मन्दिर आदि में लगाएँ।